हम सभी के जीवन का सबसे बेफ़िक्र समय हाई-स्कूल का होता है | जहाँ अच्छे नंबर लाने की चिंता से ज़्यादा कॉलेज में जाने की बेचैनी होती है | कोचिंग में पढ़ने कम और दोस्तों के साथ टाइम बिताने ज़्यादा जाते हैं |
मुग़ल बादशाहों के नाम याद हो ना हो लेकिन सचिन ने कब शतक मारा था वो ज़रुर याद रहता है | ऐसे ही भिलाई के कुछ अल्हड़ दोस्तों की कहानी है गुगली |
ये दोस्त क्रिकेट के दीवाने होते हैं इसलिए ये कहानी भी 2007 में इंडिया के वर्ल्डकप हारने से शुरु होती है और 2011 में वर्ल्डकप जीतने पर ख़त्म होती है |
इन चार सालों में ये दोस्त बहुत से सपने देखते हैं लेकिन इनके साथ कुछ ऐसी गुगली होती है कि इनका जीवन उथल पुथल हो जाता है | हर कहानी की तरह इस कहानी में भी बहुत सारे लोग होंगे जैसे – प्यार,सपने,उम्मीदें और आशाएँ |
इस कहानी में भी प्यार छूटेगा | सपने टूटेंगे | उम्मीदें और आशाएँ कहीं रास्ते में ही उतर जाएँगे | लेकिन एक चीज जो हर वक़्त कहानी में अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ करायेगा वो है – दोस्ती | इस भागती हुई कहानी में दोस्ती भी थका है लेकिन रुका कहीं भी नहीं है |
इस कहानी में हर एक क़िरदार का अपना महत्व है इसलिए सभी ने अपने-अपने तरीके से इस कहानी को बयाँ किया है और इस कहानी को अंज़ाम तक पहुँचाया है | कभी योगेश ने अपने ‘हम’ वाले अंदाज़ में तो कभी कमलेश ने अपने सहमें अंदाज़ में |
आख़िर में यह कहानी हर उस शख़्स के लिए है जिसके अंदर अभी भी उसका लड़कपन ज़िंदा है और आज भी वह उसी लड़कपन में जीना चाहता है |